हिंदी कविता – धरती माँ

धरती की छाती पर हम जब कुछ दाने बिखरा दें तो वह धन्य धन्य हो जाती है उन नन्हे दानों के बदले सोना वह उपजाती है पर, उसी छाती पर जब हम पत्थर बिखराते हैं चीर कलेजा कोमल उसका सलाखों को सजाते हैं तब वह सिसक सिसक कर हमसे करती जाती मौन प्रार्थना मत करना […]

“सृजन”

कल्पनाओं का सृजन हुअा, लगन से गगन छुअा, तपन का है परिणाम ये, सृजनात्मकता का नाम ये, कला का है केंद्र ये, प्रतिभाओं का मेल ये, विज्ञान का है खेल ये, ज्ञान का है देह ये, अभियंताओं का अभीलेख ये, तरुणों से विकास ये, सृजन तो प्रयास है यह प्रयास सफल हो यही है निवेदन […]