Poem: Mrityudand – Shreeram Iyer

Poem: Mrityudand – Shreeram Iyer – UMantra [अभिभावक] हाय ! भाग्य में ही आया; क्यों मेरे यह मृत्युदंड || सूखता है कंठ मेरा; जब सुना हैं मृत्युदंड| काश काँपते हाथ मेरे; जब किया था मैंने कर्म || न सुनी थी उसकी विनती हाथ जोड़े जब खडा था| ले लिए थे प्राण उसके; परिणाम न किंचित […]

माता-पुत्र

आप सबने इस बात को महसूस किया होगा कि, माँ वास्तविकता में भगवान का ही रूप होती है| खुद भूख सहन कर सकती है पर पुत्र को भूखा नहीं देख सकती| पुत्र की तबियत ख़राब होने पर अपने सुख चैन को भूल कर पूरी तरह बच्चे की सेवा करती रहती है | यह कहना बिलकुल […]