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Shreeram Iyer's articles

परीक्षा की घडी जब, आन पडी । हर कार्य की गति जब, हार पड़ी ।। न दिखा जब कोई सहारा । देव देव आलसी पुकारा। कर्म से भला, हमें क्या लेना। बिन काम किए, बस मिले हमें मेवा । इस सोच को जब, मन ने ललकारा। देव देव आलसी पुकारा। जब सारी दुनिया, व्यस्त गहन। […]

Poem: Mrityudand – Shreeram Iyer – UMantra [अभिभावक] हाय ! भाग्य में ही आया; क्यों मेरे यह मृत्युदंड || सूखता है कंठ मेरा; जब सुना हैं मृत्युदंड| काश काँपते हाथ मेरे; जब किया था मैंने कर्म || न सुनी थी उसकी विनती हाथ जोड़े जब खडा था| ले लिए थे प्राण उसके; परिणाम न किंचित […]

क्यों जन्मा था ये प्रश्‍न लिए | भौतिक सुखों का मौज लिए || बिन, इस धरती को मान दिए | क्या ऐसे ही मुझे जाना होगा ? कुछ काम करके दिखाना होगा… श्वेत पटल सा विश्व बना था | ज्ञानियों ने जिसमे रंग भरा था || इसको और सवारना होगा| माँ का मान बढ़ाना होगा […]

[अभिभावक] हाय ! भाग्य में ही आया; क्यों मेरे यह मृत्युदंड || सूखता है कंठ मेरा; जब सुना हैं मृत्युदंड| काश काँपते हाथ मेरे; जब किया था मैंने कर्म || न सुनी थी उसकी विनती हाथ जोड़े जब खडा था| ले लिए थे प्राण उसके; परिणाम न किंचित सोच रखा था || है यह कैसी […]

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