आत्म हत्या क्यों? जीवन चुनें

यह अक्सर देखने में आता है कि इस संसार में सभी एक दूसरे से तुलना (comparison) करते रहते हैं| भाई बहनों में कितना प्रेम होता है पर school में teachers, घर में parents इस तुलना के कारण बच्चों को परेशान कर देते हैं| वे लोग ये नहीं सोच-समझ पाते कि इन बच्चों को बुद्धि, ज्ञान, एकाग्रता (concentration) देने वाला कोई और ही है और parents ,teachers, संपर्क में आने वाले लोग, इनमें, इस समझदारी की कमी का प्रभाव, बच्चे पर बहुत ही बुरा पड़ता है, हो सकता है वह डिप्रेशन (depression) में चला जाये या अपने ही भाई या बहन से द्वेष करने लगे या पढ़ाई का स्तर और भी गिर जाए| इसलिए यह आवश्यक है कि इस प्रकार कोई, किसी की किसी से तुलना न करे और न ही हम खुद को, किसी से ही compare करें| अमूल्य समय को किसी के शिकवे शिकायतों में व्यर्थ न करें और जितना बन पड़े सबका भला करें|
इसी बात पर एक दृष्टान्त याद आ रहा है— एक सज्जन अपने किसी परिचित को आप बीती सुना रहे थे| मैं बहुत परेशान था बहुत दुखी था कि धन का अभाव तो था ही साथ में खुद ही दूसरों से तुलना करता कि मैं इस स्थिति में क्यों हूँ? पत्नी बच्चे भी दूसरों से तुलना करते कि ये गरीबी हमें ही क्यों? अड़ोसी पड़ोसी तो मुझसे कम पढ़े लिखे होकर भी अमीर हैं| इस प्रकार दुखी हो तंग आकर मैंने आत्मा हत्या करने की सोची| नदी के पुल पर जा बैठा और जब एकदम सुनसान हो गया तो हिम्मत बटोरने लगा कि कूद जाऊं नदी में | इतने में मेरे मित्र पहुंचे बोले यहाँ तुम अकेले बैठकर क्या कर रहे हो? पहले तो कुछ, बात घुमाने की कोशिश की पर बाद में सही बात बता दी| वह मित्र मेरे घर जाकर मेरी पत्नी से बोला मैं इनको ३-४ दिनों के लिए अपने साथ अपने गाँव ले जाने आया हूँ और मुझे अपने साथ ले गया|
रात को मैं और मेरा मित्र दोनों भोजन करके सो गए| सुबह, चाय नाश्ते के बाद टहलने निकले और मेरे मित्र ने, मुझे कूड़े के ढेर के पास ले जाकर खड़ा दिया|…बदबू आ रही थी| मित्र ने कहा –– जानते हो यह कचरा भी किसान के लिए बड़े ही काम की चीज है, इससे वह खाद बनाएगा और पौधों में डालेगा और अच्छी फसल होगी| अब ये बताओ मित्र! क्या तुम्हारा जीवन इस कूड़े से भी गया गुजरा है? मैं मन ही मन सोचने लगा अरे कोई शक नहीं, मेरा जीवन तो इससे लाख गुना अच्छा है| मेरी खामोशी देख मेरा मित्र मुझसे कहने लगा| इस सृष्टि में कोई भी वस्तु बेकार नहीं होती, सिर्फ हमारे नज़रिए की बात होती है| उसके अच्छे से अच्छे उपयोग करने की बात है| बस शब्दों ने मेरे दिल पर अपना प्रभाव डाला|
तीन-चार दिनों में, मैं अपने गाँव लौट गया| मैंने अब अपने जीने का, सोचने का तरीका बदल लिया| सोचा कि न अब मैं ईश्वर को, न ही किस्मत को ही कोसूँगा, इसके बदले समय को अच्छे कामों में लगाऊंगा, समाज सेवा करूंगा| मैंने मेरे जीवन में परिवर्तन को देखा| जो लोग मुझे मेरे गरीब होने के कारण हीनदृष्टि से देखते, भला बुरा कहते वे सब अब मेरी प्रशंसा करने लगे| समय पर मिले एक अच्छे मार्ग दर्शक के कारण मैं अपनी मंजिल पर पहुँच सका|
अब समझ में आया कि परमात्मा जो भी करता है सही करता है| अगर मैं अमीर होता तो हो सकता, धन के मद में कोई अच्छा कार्य न करता और अपनी मंजिल तक न पहुँचता|

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