आप सबने इस बात को महसूस किया होगा कि, माँ वास्तविकता में भगवान का ही रूप होती है| खुद भूख सहन कर सकती है पर पुत्र को भूखा नहीं देख सकती| पुत्र की तबियत ख़राब होने पर अपने सुख चैन को भूल कर पूरी तरह बच्चे की सेवा करती रहती है | यह कहना बिलकुल गलत नहीं होगा कि, माँ उस परमात्मा का ममता भरा, हर स्वरूप है | मेरे ख्याल में एक माँ कभी यह नहीं भूल पाती कि वह अपने ही अंश से बात कर रही है, और यह अंश उसे अपने शरीर और स्वास्थ्य से ज्यादा प्रिय है |
इसी बात पर एक घटना याद आ रही है है जो मेरे ताऊजी की आँखों देखी है|
उनके शब्दों में—मैं कुछ दिन हुए आगरे गया था| बाज़ार में कुछ सामान लेने के लिए गया था और एक दूकान पर ठहर गया| उसी समय एक महा निर्धन और दुखी वेश में एक स्त्री को आते देखा, वह भिखारिन- सी ज्ञात होती थी| वह उम्र में छोटी थी,गोद में दो साल के बच्चे को लिए हुए थी| वह वहां ठिठक गई, पर किसी से कुछ माँगा नहीं| कुछ देर में उसकी दशा बदलने लगी,उसके नेत्रों की पुतली चढ़ने लगी और कांपना शुरू हो गई, इतने ही में बेहोशी और बढ़ने लगी और वह पृथ्वी पर गिरने लगी| किन्तु वाह री माता! तू धन्य है! उस अस्वस्थ-दशा में भी जब गिर रही थी, पुत्र को एक हाथ से सम्हाले हुए थी, और दूसरे करवट से पक्के फर्श पर धडाम से गिर गई| इस दशा में उसको बहुत चोट आ गई, और कुहनी तथा सिर से रक्त भी प्रवाहित हो उठा| यह मिर्गी का दौरा था, मुंह से झाग निकलने लगा|
मगर ऐसी दशा में भी वह एक हाथ से पुत्र को हृदय से लगाए हुए थी और पुत्र निश्चित रूप से माता से दुग्ध पान कर रहा था|
थोड़ी देर बाद वह स्वस्थ हुई अरे! पुत्र के मुख को देखती हुई ऐसे चली गई मानो उसके कोई चोट आयी ही न हो|
वह पुत्र-प्रेम का मैंने जीता जागता एक अपूर्व उदाहरण था जो मैंने देखा था
जन समुदाय के लिए यह भले ही एक मामूली सी घटना थी पर एक हृदय वाली के लिए तो कल्याणी माँ के वात्सल्य, का एक साधक के हृदय को पलट देने वाला, सच्चा खेल था|
क्या कभी हम ऐसी माँ के ऋण से उऋण हो सकते हैं?
मेरे विचार से यह कभी भी संभव नहीं, पर हमे इस बात का आभास होना चाहिए कि, हम उस माँ के कठिन ९ महीने के यज्ञ का फल हैं| और वो माँ ही हमारी पहली गुरु है, जो हमे हर चीज का बोध कराती है, सही गलत का बोध कराती है, उस का ही आशीर्वाद हमें सबसे पहले मिलता है, और यदि हम यह सब याद रख सकें तो कभी उस माँ के साथ दुर्व्यवहार न कर सकेंगे|