सकारात्मक सोच (भाग-2)

हमें अपने जीवन को हमेशा सकारात्मकत विचारों के साथ आगे ले जाना चाहिए| बहुत से लोग सोचते है ईश्वर ने मुझे कैसा जीवन दिया व कुछ ना कुछ कमी ही निकलते रहते और ईश्वर (गुरु) को बुरा-भला कहते रहते हैं| इसी बात पर मुझे एक कहानी याद आ रही है|

एक समय की बात है, एक गाँव में दो किसान रहते थे। दोनों बहुत ही गरीब थे, दोनों के पास थोड़ी-थोड़ी ज़मीन थी, दोनों उसमें ही मेहनत करके अपना और अपने परिवार का गुजारा चलाते थे। अकस्मात कुछ समय पश्चात दोनों की मृत्यु हो गयी। यमराज दोनों को भगवान के पास ले गए। उन दोनों को भगवान के पास लाया गया। भगवान ने उन्हें देख के उनसे पूछा, ”अब तुम्हे क्या चाहिये, तुम्हारे इस जीवन में क्या कमी थी, अब तुम्हें क्या बना कर मैं पुनः संसार में भेजूं।” उनकी बात सुनकर उनमे से एक किसान बड़े गुस्से से बोला, ” हे ईश्वर! आपने इस जन्म में मुझे बहुत ख़राब ज़िन्दगी दी थी। आपने तो कुछ भी नहीं दिया मुझे। मैंने पूरी ज़िन्दगी बैल की तरह खेतों में काम किया है, जो कुछ भी कमाया वह बस पेट भरने में लगा दिया, ना ही मैं कभी अच्छे कपड़े पहन पाया और ना ही कभी अपने परिवार को अच्छा खाना खिला पाया। जो भी कमाता था, कोई आकर के मुझसे लेकर चला जाता था और मेरे हाथ में कुछ भी नहीं आया। जानवरों जैसी ज़िन्दगी जी है मैंने।” भगवान उसकी बात सुनकर कुछ समय मौन रहे और पुनः उस किसान से पूछा, ”तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हे क्या बनाऊँ।”

वह किसान पुनः बोला, ” भगवन आप कुछ ऐसा कर दीजिये, कि मुझे कभी किसी को कुछ भी देना ना पड़े। मुझे तो बस चारों तरफ से पैसा ही पैसा मिले।” भगवान से उसकी बात सुनी और कहा, “मैं तुम्हे ऐसा ही जीवन दूँगा जैसा तुमने मुझसे माँगा है।” तथास्तु, तुम अब जा सकते हो| उसके जाने पर भगवान ने पुनः दूसरे किसान से पूछा, तुम्हारे जीवन में क्या कमी थी, तुम क्या चाहते हो?  तुम बताओ तुम्हे क्या बनना है,

उस किसान ने भगवान के सामने हाथ जोड़ते हुए कहा, ” हे भगवन। , मैं आपसे क्या मांगू, आपने मुझे सबकुछ दिया। आपने मुझे एक अच्छा परिवार दिया, मुझे कुछ जमीन दी जिसपे मेहनत से काम करके मैंने अपना परिवार को एक अच्छा जीवन दिया। खाने के लिए आपने मुझे और मेरे परिवार को भरपेट खाना दिया। मैं और मेरा परिवार कभी भूखे पेट नहीं सोया। बस एक ही कमी थी मेरे जीवन में, जिसका मुझे अपनी पूरी ज़िन्दगी अफ़सोस रहा और आज भी हैं। मेरे दरवाजे पे कभी कुछ भूखे और प्यासे लोग आते थे। भोजन माँगने के लिए, परन्तु कभी कभी मैं भोजन न होने के कारण उन्हें खाना नहीं दे पाता था, और वो मेरे द्वार से भूखे ही लौट जाते थे| उसकी बात सुनकर भगवान ने उससे पूछा, ” तो अब क्या चाहते हो तुम, इस जन्म में मैं तुम्हें क्या बनाऊँ।” किसान ने हाथ जोड़ते हुए विनती की, ” हे प्रभु! आप कुछ ऐसा कर दो कि मेरे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये।” भगवान ने कहा, “तथास्तु, तुम जाओ तुम्हारे द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा नहीं जायेगा।”

अब दोनों का पुनः जन्म हुआ। दोनों बड़े हुए।
पहला व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था, कि उसे चारो तरफ से केवल पैसा मिले और मुझे कभी किसी को कुछ देना ना पड़े, वह व्यक्ति उस शहर का सबसे बड़ा भिखारी बना। अब उसे किसी को कुछ देना नहीं पड़ता था और जो कोई भी आता उसकी झोली में पैसे डालके ही जाता था। और दूसरा व्यक्ति जिसने भगवान से कहा था कि उसे कुछ नहीं चाहिए, केवल इतना हो जाये की उसके द्वार से कभी कोई भूखा प्यासा ना जाये, वह उस शहर का सबसे अमीर आदमी बना।
इस कहानी से आपको यही समझाना चाहता हूँ कि- (गुरु) ईश्वर ने हमें जो दिया है हमें भी उसी में संतुष्ट होना बहुत जरुरी है। हम अक्सर देखते है कि लोगों को हमेशा अपनी चीज़ छोड़कर, दूसरे की चीज़ें ज्यादा पसंद आती हैं और इसके चक्कर में वे अपना जीवन ऐसे ही निकल देते है| यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि हम चीजों को सकारात्मक रूप में देखते है या नकारात्मत, अगर आप नकारात्मक रहेंगे तो आपको हर चीज में कमी ही नज़र आयगी, तो आप अपनी सोच बदलें और मन में हमेशा सकारात्मत विचार रखते हुए आगे बड़े व जीवन का आनंद लें|
 

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