अनमोल गुण विनम्रता

मानवता की गरिमा इसी में है कि हम सज्जनता को धूमिल न होने दें| विनम्र और सज्जन व्यक्ति तो सबके प्रिय, बिना किसी प्रयत्न के ही बन जाते हैं| जिस प्रकार पुष्पों की सुगंध अनायास ही लोगों को अपनी ओर आकर्षित कर लेती है उसी प्रकार विनम्र व सज्जनों की तरफ लोग अपने आप ही खिंच जाते हैं| मानवता के बिना सज्जनता अधूरी है|

यदि हम चाहते हैं कि, जिस समाज में हम रहते हैं, वह बहुत अच्छा हो तो यह आवश्यक है कि हमारे संपर्क में आने वाला हर व्यक्ति नेक हो| इसके लिए यह आवश्यक है कि हम स्वयं नेक बनें और हमारे संपर्क में आने वाले के मन को प्रभावित करें और वे सोचने पर मजबूर हो जाएँ कि हम भी इनके जैसे बनें|
परन्तु अपने समाज में अपने आस-पड़ोस में हम इसकी कमी महसूस करते हैं|
इसी बात पर मुझे एक दृष्टांत याद आ रहा है— एक बड़े अमीर का बेटा था कुसंगति में फँस गया था, उसके साथी भी ऐसे ही थे| किसी को भी अकारण मारना पीटना, परेशान करना, अपमानित करना, दुर्व्यवहार करना, इन सब कामों में उसे बड़ा ही मजा आता था| रईस का पुत्र होने के कारण उसे कोई कुछ कह नहीं पाता था| पिता भी उसकी करतूतों से बड़े दुखी थे ,परन्तु क्या करते क्योंकि वह अब तक हाथ से निकल चुका था|
दक्षिण भारत में एक महात्मा थे जिनका नाम तिरुवल्लुवर था| उनकी चेन्नई में एक कपड़ों की दूकान थी| एक दिन वह युवक वहीं आस-पास अपने मित्रों के साथ घूम रहा था तब, उसके मित्रों ने तिरुवल्लुवर के बारे मे उस युवक को बताया कि यह दूकानदार कभी भी क्रोधित नहीं होता, सबसे बहुत ही प्रेम का व्यवहार करता है| वह युवक बोला देखना वह अभी कैसे क्रोधित हो जाता है| वे सब उनकी दूकान पर पहुंचे और साडी दिखाने को कहा और उस युवक ने उसकी कीमत पूछी | उनने उसकी कीमत आठ रुपये बताई| युवक ने उसे दो हिस्सों में बाँट दिया और पूछा कि अब? वे बोले चार | ऐसे ही छोटे –छोटे टुकड़े करता जाता और उनसे कीमत पूछता जाता| उन्हें देख उस युवक के आश्चर्य का ठिकाना न रहा कि ऐसे व्यवहार के बावजूद इस व्यक्ति के भावों में कोई परिवर्तन ही नहीं आया बिलकुल क्रोधित नहीं हुए वैसे ही विनम्र और प्रसन्न| वह युवक उनके चरणों में गिर पड़ा और माफ़ी मांगने लगा और साड़ी की कीमत आठ रुपये लेने के लिए आग्रह करने लगा|
उनने बड़े प्रेम से कहा पुत्र! यह तो अब किसी काम की नहीं, दूसरी साड़ी लेनी हो तो दे देता हूँ
उनके ऐसे विनम्र व्यवहार से उस युवक का हृदय ही बदल गया और वह उन्हीं का होकर रह गया| भले ही वे एक छोटे से दूकानदार थे परन्तु सज्जनता और विनम्रता के धनी थे| ऐसे लोग ही उनके संपर्क में आने वालों को सही मार्ग दिखा सकते हैं और उन्नति के पथ पर आगे बढ़ा सकते हैं|

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