यदि कोई व्यक्ति यह सोचे कि उसके जीवन में कोई परेशानी ही ना आये और जीवन ऐसे ही सुखद परिस्थितियों में गुजर जाये तो ऐसे में व्यक्ति जिसने अपने जीवन में कभी संघर्षपूर्ण परिस्थितियों का सामना ही न किया हो, वह बड़ी आसानी से घबरा जायेगा. इसी बात पर मुझे एक कहानी याद आ रही है |
एक बार एक किसान परमात्मा से बड़ा नाराज हो गया ! कभी बाढ़ आ जाये, कभी सूखा पड़ जाए, कभी धूप बहुत तेज हो जाए तो कभी ओले पड़ जायें ! हर बार कुछ न कुछ कारण से उसकी कुछ फसल ख़राब हो जाया करती थी ! एक दिन बड़ा तंग आकर उसने परमात्मा से कहा, देखिये प्रभु! आप तो परमात्मा हैं, लेकिन लगता है आपको खेती-बाड़ी की ज्यादा जानकारी नहीं है, एक प्रार्थना है कि एक साल मुझे मौका दीजिये, जैसा मैं चाहूँ वैसा मौसम हो, फिर आप देखना मैं कैसे अन्न के भण्डार भर दूंगा ! परमात्मा मुस्कुराये और कहा ठीक है, जैसा तुम कहोगे मैं वैसा ही मौसम कर दूंगा|
किसान ने गेहूं की फ़सल बोई, जब धूप चाही, तब धूप मिली, जब पानी तब पानी ! तेज धूप, ओले, बाढ़, आंधी तो उसने आने ही नहीं दी, समय के साथ फसल बढ़ी और किसान की ख़ुशी का तो ठिकाना ही न रहा, क्योंकि ऐसी फसल तो आज तक नहीं हुई थी ! किसान ने मन ही मन सोचा अब पता चलेगा परमात्मा को, कि फ़सल कैसे करते हैं, बेकार ही इतने बरस हम किसानों को परेशान करते रहे|
फ़सल काटने का समय भी आया, किसान बड़े गर्व से फ़सल काटने गया, लेकिन जैसे ही वह फसल काटने लगा तो देखता क्या है कि गेहूं की एक भी बाली के अन्दर गेहूं नहीं था, सारी बालियाँ अन्दर से खाली थी, बड़ा दुखी होकर उसने परमात्मा से कहा, प्रभु! ये क्या हुआ ?
तब परमात्मा बोले- ये तो होना ही था, तुमने पौधों को संघर्ष का ज़रा सा भी मौका नहीं दिया, न तेज धूप में उनको तपने दिया, न आंधी ओलों से जूझने दिया, उनको किसी प्रकार की चुनौती का अहसास जरा भी नहीं होने दिया, इसीलिए सब पौधे खोखले रह गए, जब आंधी आती है, तेज बारिश होती है, ओले गिरते हैं, तब पौधा अपने बल से ही खड़ा रहता है, वह अपना अस्तित्व बचाने के लिए संघर्ष करता है और इस संघर्ष से जो बल पैदा होता है वही उसे शक्ति देता है, उर्जा देता है, उसकी जीवटता को उभारता है| सोने को भी कुंदन बनने के लिए आग में तपने, हथौड़ी से पिटने, गलने जैसी चुनौतियों से गुजरना पड़ता है तभी उसकी स्वर्णिम आभा उभरती है, उसे अनमोल बनाती है !
इसी तरह जिंदगी में भी अगर संघर्ष न हो, चुनौती न हो तो आदमी अन्दर से खोखला ही रह जाता है, उसके अन्दर कोई गुण नहीं आ पाते! ये चुनौतियाँ ही हैं जो आदमी रूपी तलवार को धार देती हैं, उसे सशक्त बनाती हैं, यदि हमें भी जीवन में जीवटता लानी हो तो चुनौतियों को स्वीकार करना ही पड़ेंगा, अन्यथा हम खोखले ही रह जायेंगे|