मानवता

मनुष्य का शरीर मिलने मात्र से हम मनुष्य, मानव या इंसान नहीं कहला सकते| कुछ विशेष गुणों की आवश्यकता होती है, जिनकी उपस्थिति के कारण हम मानव कहला सकते हैं| मानवता, मनुष्य का सबसे सुन्दर गुण है जिसकी उपस्थिति के कारण वह लोकप्रिय हो जाता है| वे गुण हैं–परोपकार की भावना, दूसरों की वस्तुओं को देखकर उन्हें किसी भी प्रकार से हासिल लूँ ऐसी भावना का न होना, इकट्ठा करते रहने की भावना न होकर, जो भी अपने पास है उसी में से दूसरों को देते रहने की इच्छा का होना, वस्तु भले ही मेरे काम की ही क्यों न हो, परन्तु अगले व्यक्ति को यदि उसकी आवश्यकता हमसे अधिक हो तो पहले उसे दे देने की भावना| जैसे किसी वस्तु या बात से हमें तकलीफ पहुँचती हो तो ऐसी चीजों से दूसरों को भी बचाना, जैसे कड़वी बोली हमें कष्ट देती है तो दूसरों से भी कड़वी वाणी में न बोलना| ऐसे तो कई गुण हैं, जिसकी आवश्यकता हर इंसान को है|

इसी बात पर मुझे एक दृष्टांत याद आ रहा है—एक व्यक्ति था जो अत्यधिक धनी था, साथ ही साथ उदार स्वभाव का भी था, सो चाहता था कि उस धन का उपयोग कर कोई ऐसा कार्य करे जिससे लोगों का भला हो| उसके पास कई एकड़ जमीन भी थी उसके गाँव में, उस जमीन पर उसने सबसे पहले कुआँ खुदवाया जिससे कोई प्यासा न रहे, फिर कई फलों के वृक्ष भी लगवाए जो छाया के साथ-साथ फल भी दें, परन्तु इससे भी उन्हें संतुष्टि न मिली, तो सोचा कि यहाँ एक राधा-कृष्ण जी का मंदिर बनवा दें| कई भक्त मंदिर दर्शनार्थ पहुँचने लगे| दर्शन के उपरांत वे वृक्षों की छाया व फलों का उपयोग करते, जिसे देख वह बड़ा ही खुश होता, परन्तु अब उसे लगा कि अच्छी व्यवस्था (मेनेजमेंट) की आवश्यकता है, जिसके लिए एक योग्य एवं ईमानदार, दिए गए कार्य को अपना समझकर करने वाले व्यक्ति की आवश्यकता है| वह छुपकर बैठ लोगों को परखता रहता|
आखिर एक दिन उसे ऐसा व्यक्ति मिल ही गया, जो उसकी परीक्षा में खरा उतरा|

परीक्षा लेने के लिए उसने राह में बड़ा सा पत्थर रख दिया, जिससे कइयों को ठोकर लगी, परन्तु लोग देखते हुए भी ऐसे ही निकल जाते जिसे इस व्यक्ति ने हटाया | लोग मंदिर में दर्शन हेतु एक दूसरे को धक्का मारते, भारी अव्यवस्था थी, इसे देख इस व्यक्ति ने लोगों को कतार में भेजना शुरू किया, इस प्रकार कई अच्छे कार्यों को करता देख धनी व्यक्ति अत्यधिक खुश हो गया कि योग्य मेनेजर मिल गया|
धनी व्यक्ति ने उसे बुलाया और कहा—मैं कई दिनों से तुम्हें देख रहा हूँ कि तुम में, वास्तव में मानवता कूट-कूटकर भरी हुई है, अत: तुम मेनेजर पद के अधिकारी हो|

मैं कई दिनों से ऐसे व्यक्ति की तलाश में था|
उस व्यक्ति में जो अकारण अहेतुकी सहायता करने की भावना थी, उसी का यह फल था कि उसे ऐसी अच्छी (service) सेवा बिना किसी साक्षात्कार(interview) के ही मिल गई जो बड़ी-बड़ी डिग्री धारकों को न मिल सकी|

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