सकारात्मकता–भाग 2

हमारे जीवन पर हमारी सोच का गहरा प्रभाव पड़ता है| कोई भी व्यक्ति पहले सोचता है, तब ही कोई कार्य करता है| कई बार जब कोई गलत कार्य हो जाये तो हम अक्सर कहते हैं कि अरे! सोचा ही नहीं था, पता नहीं कैसे यह कार्य हो गया|
जब तक मन किसी काम को सोचकर, हमारी इन्द्रियों को order न दे तो कोई काम हो ही नहीं सकता| इसलिए यह आवश्यक है कि हम किसी भी कार्य को करने से पूर्व सकारात्मक विचार लायें कि जिस कार्य को मैं अपने हाथ में ले रहा हूँ, बहुत ही अच्छे से पूरा करूंगा, और यह विश्वास शत –प्रतिशत का होना चाहिए |
यदि हमारे अन्दर कोई भी negative thought आया कि समझिये काम बिगड़ा|
इसी बात पर आधारित एक घटना मैं आप लोगों से share करना चाहूंगी|
हमारे एक परिचित परिवार में बेटे ने अपना खुद का कोई business शुरू किया| किसी अनुभवी का कोई सहारा न था| खुद भी इस क्षेत्र में नौसिखिया था|
इसका परिणाम यह हुआ कि उसकी विचारधारा में सकारात्मक विचारों की जगह नकारात्मकता भरने लगी| जिससे घबराहट बढ़ने लगी और सही decision न ले पाता| ऐसे व्यक्ति को business partner बना लेता जो उसे धोखा दे देता| आखिरकार यह हुआ कि बेचारा उधारियों में फंसता गया| आए दिन उसके यहाँ लोग पैसे वापस मांगने आ जाते|
ऐसी परिस्थिति में उसके एक uncle ने उससे कहा कि तुम बिल्कुल चिंता छोड़ दो| मैं हूँ न! अभी फिल-हाल ये cheque पकड़ो| मैं सलाह देता रहूँगा कि क्या कैसे करना है| अपने business को नए सिरे से शुरू करो| और भी रुपयों की आवश्यकता हो तो मत घबराओ ,मैं हूँ |
बस इतने support और सकारात्मक विचार की आवश्यकता थी|
बस उसमे इतना आत्म विश्वास जागा कि, उसका business दिन दुगुनी-रात चौगुनी की रफ़्तार से आगे बढ़ने लगा| अब रूपए –पैसों की कोई कमी न थी| उसने अपने uncle ji से जो भी रूपए लिए वे लौटा दिए | जो उधारियां थीं उन्हें भी चुका दिया| एक बड़े businessman के नाम से विख्यात हुआ|
हमें इससे यहाँ यह पता चला कि सकारात्मकता से ही आत्म विश्वास बढ़ता है और हम अपने जीवन में उन्नति के पथ पर बड़ी ही तेज़ी से अग्रसर हो सकते हैं|

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