धन की आसक्ति

धन की आवश्यकता तो प्रत्येक व्यक्ति को होती है, क्योंकि इस युग में प्रत्येक की आवश्यकताएं अत्यधिक बढ़ गई हैं| कुछ तो जरूरतें होती हैं जिनके बिना काम नहीं चल सकता, परन्तु कुछ सुख- सुविधाओं की पूर्ति के लिए होती हैं| वैसे भी सुख सुविधाओं का न तो कोई आदि होता है, न तो अंत ही होता है | यदि हम घर में बैठे रहें कोई काम काज न हो, तो ऐसा लगने लगता है कि शायद कुछ पैर में या कुछ पीठ में दर्द हो रहा है क्या? तो क्यों न पैर दबाने की मशीन, पीठ की मालिश वाली मशीन ही मंगवालें| इस प्रकार हम कितना ही धन कमाएं तो कम ही पड़ेगा| इसीलिए ये आवश्यक है कि हम अपनी आवश्यकताओं को सीमित करें| जिससे यह होगा कि हम जो कमायें उसमे से कुछ आर्थिक सहायता किसी जरूरतमंद की भी कर सकें |
कुछ ऐसे महानुभाव भी होते हैं जो इन उपरोक्त प्रकारों से totally different type के होते हैं| जो खूब मेहनत कर खूब पैसा कमाएंगे परन्तु उस पैसे को सिर्फ जोड़ते ही जायेंगे, न तो खुद के लिए, न ही परिवार के लिए खर्च करेंगे| ऐसे लोग एक महत्वपूर्ण बात नहीं जानते हैं, और यही कारण है कि ऐसी गलती करते हैं|
जिस प्रकार बारिश का पानी एक जगह अगर इकट्ठा हो जाए और उसमे प्रवाह न हो तो सडांध हो जाए ,पानी से बदबू ,बीमारियों का घर हो जाए | बिलकुल इसी प्रकार धन में भी प्रवाह की आवश्यकता होती है, उसे खुद पर परिवार पर और “किसी जरूरतमंद की मदद” के लिए जरूर काम में लायें अन्यथा इसमें भी सडांध के कारण कोई और ही लूट ले जाएगा |
इसी बात पर एक दृष्टांत याद आ रहा है —एक व्यक्ति था जिसका नाम धनीराम था,परन्तु वास्तव में वह महा दरिद्र, निर्धन था| एक दिन अपनी खाट पर लेता हुआ था तो उसके अंतर से एक आवाज़ आयी कि तू इस देश को छोड़ दे और कहीं जाकर धंधा कर | तेरा ये कष्ट मिट जाएगा|
प्रात:काल उठकर अपने कुछ मित्रों से कुछ पैसे इकट्ठे कर निकल पड़ा | ईश्वर की भी कृपा थी कि पहले ही दिन व्यापार में पैसे दुगुने हो गए| बहुत ही जल्दी वह अमीर हो गया परन्तु एक पैसा भी,न खुद पर, न अपने परिवार पर ही खर्च करता, दान लेने कोई आ जाता तो अपशब्दों का प्रयोग कर भगा देता| इससे न घर के न बाहर के ही लोग उसे पसंद करते|
बात उस जमाने की बात है जब लोग धन अपने ही घर में सम्हालकर रखा करते थे| धनीराम की कंजूसी से परेशान होकर घर का सभी सदस्यों ने रात के वक़्त बैल गाडी में सारे रूपए भर लिए और ऐसी जगह चले गए जहां कोई उन्हें पकड़ न सके| सुबह उठकर जब उसने देखा तो सिर पीट –पीटकर रोने लगा, परन्तु अड़ोसी पड़ोसी भी कहने लगे कि जो किसी के काम न आये, ऐसों का पैसा ऐसे ही जाता है, इस कंजूस को कोई भी सांत्वना देने वाला भी न था| जिसके पत्नी बच्चे ही अपने न हुए तो बाहर के लोग क्या सगे होंगे?
इस घटना ने उसकी आँखें खोल दीं| उसे एहसास हुआ कि जिस पत्नी बच्चों के लिए मैं दिन रात एक करके, खूब मेहनत करके कमा रहा था उन सबको, मुझसे नहीं, सिर्फ मेरे धन से ही प्यार था| अतः अब इस मनुष्य जन्म को पाकर सही लक्ष्य को पाने का प्रयास करता हूँ| उसमे इस संसार के प्रति पूर्ण विरक्ति भाव जाग्रत हो गया
और भीख मांगकर अपना पेट भरने लगा और ईश्वर प्राप्ति के साधन में जुट गया|

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