श्रेष्ठ व्यवहार

साधारण ज्ञान तो सबके पास होता है ,परन्तु हमें अपने ज्ञान को विशुद्ध करना है, जिसके द्वारा हम अच्छी तरह से विचार विमर्श कर पायें कि क्या उचित है और क्या अनुचित है| परन्तु अक्सर होता यह है कि हमारे पिछले संचित संस्कारों का प्रभाव इतना अधिक होता है कि हम उचित अनुचित में भेद नहीं कर पाते नतीजा यह होता है कि हम आत्माकी आवाज़ को न सुनते हुए मन की आवाज़ को सुन लेते हैं और अनुचित व्यवहार कर जाते हैं |

कई बार तो हम ऐसे कार्य करते हैं, जो हमारे घर की परंपरा है| जैसे किसी निरीह प्राणी की हत्या करना, मारना , बलिदान देना आदि | ये तो कोई अच्छी बात नहीं |हमारे पूर्वजों ने कहा कि यह अच्छा कार्य है इससे भगवान् खुश होंगे , मनोकामनाएँ पूर्ण होंगी , तो उसे बिना सोचे समझे ही follow कर लिया | परन्तु हमें तो हमारी प्रियतम वस्तु को ही ईश्वर को भेंट करना चाहिए , बलिदान देना चाहिए | हमें हमारे प्राणों से ज्यादा प्यारा क्या हो सकता है? परन्तु हम तो उसे बहुत सम्हालकर रखते हैं और एक निरीह प्राणी की बलि दे देते है|

ऐसे में हमें अन्धानुकरण न करते हुए सद्बुद्धि का उपयोग करना चाहिए और सही कार्य करना चाहिए| हमें सभी को समभाव से देखना , सबको सम्मान देना ,किसी की भी सेवा के लिए तैयार रहना, परन्तु सेवा लेने से बचना , ऊँच –नीच का भेद न करना सबको प्यार बाँटना आदि गुणों को अपने व्यवहार में लाना होगा , क्योकि यही सब तो हम अगले से expect करते हैं तो हमें भी सबको यही सब कुछ देना भी होगा|

क्योंकि निष्काम भाव से की हुई सेवा , दिया हुआ अच्छा व्यवहार, या प्रेम , कठिन परिस्थितियों में किसी द्वारा की हुई मदद , इन सब से कोई उऋण नहीं हो सकता इसलिए यह अति उत्तम व्यवहार है जबकि दिया हुआ धन तो लौटाया जा सकता है| हाँ यह सही है कि यह उत्तम व्यवहार तो है |

मुझे मेरे पिताजी ने एक कहानी सुनाई थी | उसका सार यही है कि इंसान के मन में जब मलिनता घर कर जाती है तो उसे अच्छी वस्तु भी अच्छी नहीं लगती , जैसे दुर्गन्ध की आदत पड गई तो सुगंध भी अच्छी नहीं लगती | दो सहेलियां थीं एक फूल बेचती तो एक मछलियाँ | एक दिन सामान बेचते- बेचते काफी देर हो गई | बाहर एकदम अँधेरा था ,मछली वाली का घर अत्यधिक दूर था | अतः सखी ने कहा कि आज रात तुम मेरे घर पर ही रुक जाओ| कल सुबह चले जाना , सो वह रुक गई | उसे उस कमरे में रुकवाया गया जहाँ सुगन्धित फूलों की टोकरियाँ रखी थीं| परन्तु वह करवटें बदलती रही, उसे नींद न आ रही थी | सोच रही थी कि अब क्या करूँ ? अचानक उठी और मछलियों को जिस कपडे से ढँक रखा था उस कपडे सेउसने अपना चेहरा ढांक लिया , और उसे तुरंत नींद आ गई | क्योंकि मछलियों की बू उसमे घर कर गई थी , बदबू ही उसे अच्छी लग रही थी और जो फूलों की खुशबू थी वो उसे अच्छी नहीं लग रही थी | हमारे मन में जैसे विचार होंगे हम वैसा ही व्यवहार कर पायेंगे , अतः श्रेष्ठ विचारों से ही हम श्रेष्ठ व्यवहार कर पायेंगे |
बुरों की संगति न करना, मान बड़ाई की चाह न रखना, कपट और दंभ से बचकर रहना जरूरी है| यदि इन बातों का ध्यान न रखें तो एक दिन ऐसा आएगा जब आपको श्रद्धा की दृष्टि से देखने वाले लोग ,आपसे घृणा करने लगेंगे |वही आपके दुःख का कारण बनेगा |

बाहरी मलिनता को तो हम आसानी से छुड़ा सकते हैं ,परन्तु जो मन में बस जाती है वह मन के पवित्र हुए बिना नहीं छूटती | हमेशा किसी भी कार्य को पहले मन करता है, फिर इन्द्रियां करती हैं | जो कार्य मन ने नहीं सोचा हो, वह कार्य हो ही नहीं सकता | न हमारे मन में मलिनता होगी न हमारे व्यवहार में खराबी ही आएगी |
यह आवश्यक है कि, हम अपने मन को पवित्र रखें व श्रेष्ठ व्यवहार करें| जिसे करके हम खुद भी प्रसन्न हों और जिसके प्रति यह व्यवहार किया गया हो वह भी प्रसन्न हो | पर प्रश्न यह उठता है कि इस मन की सफाई कैसे हो ? जिस प्रकार हमें किसी खास विषय को सीखना हो तो हम उस विषय के ज्ञाता या विद्वान् के पास जाते हैं, उसी प्रकार इसके लिए भी हमें ऐसे सत्पुरुष के पास जाना होगा, जो इसकी जानकारी हमें दे सकें
जो हमारे मलिन मन को स्वच्छ करके हमें श्रेष्ठ व्यवहार करने योग्य बनाएँ

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