तपकर ही सोना कुंदन बनाता है

यह बात सच है कि यह कहावत सुनने में जितना आसान लग रहा है, अच्छा लग रहा है, परन्तु चरितार्थ होते वक़्त, यह सफ़र, हमें कई बातें सिखाता है जिन्हें जीवन में सीखना आवश्यक है, परन्तु यदि परिस्थितियां न बनें तो कोई तकलीफ़ उठाकर क्यों सीखेगा? हर व्यक्ति में सब्र (patience) की जरूरत है|

विषम परिस्थितियाँ हमें कुछ सिखाने और मजबूत बनाने के लिए ही आती हैं| जैसे कोई पेड़, तेज आंधी के वक़्त ही सीखता हैं कि हमें कैसे अपने आप को सम्हालना है| दूसरी बात यह है कि अधिक कार्य का बोझ पड़ने पर या हाथ में लिए हुए कार्य के न होने पर हम अक्सर बहुत परेशान हो जाते हैं और हमारा मन इतना अधिक विचलित हो जाता है कि ईश्वर पर से विश्वास उठने लगता है, क्योंकि हममे उसकी लीला को समझने की क्षमता नहीं होती है| परन्तु हमें यह ध्यान रखना है कि हमें हमेशा सत्य एवं न्याय के पथ पर डटे रहना है|
इसी बात पर मुझे घड़े की आत्मा कथा याद आयी—- घड़े ने मन ही मन सोचा कि मैं तो मिट्टी के रूप में व्यर्थ ही पड़ा हुआ था, किसी काम का न था| एक दिन एक कुम्हार आया| उसने गैंती, फावडे का प्रयोग कर खोदकर, मुझे अपने घर ले गया| मुझे खूब रौंदा, मुझपर पानी डालकर खूब गूंथा, फिर चाक पर चढ़ाकर बड़ी तेज रफ़्तार से धुमाया, फिर काट-पीट, छंटाई की, फिर थापी से मार-मारकर मुझे बराबर किया| मुझे सही एवं सुन्दर आकार दिया इतने पर भी मेरे कष्टों का अंत न हुआ फिर मुझे पक्का करने के लिए आग में झोंक दिया गया| इतने कठिन दौर से गुजरने के बाद मैं अब एकदम परिपक्व हो गया | अब मुझे बाज़ार में ले जाया गया और मेरी कीमत लगाई गई और एक सज्जन ने मुझे खरीद लिया|
जब उस सज्जन ने मुझमे गंगा जल भरा और मुझे ऐसे स्थान पर स्थापित किया जहां संत-जन प्यास लगने पर गंगा जल पीकर अपनी प्यास बुझा सकें|
अब मुझे मेरी अहमियत का पता चला, अरे! मैं अब घड़े का रूप पाकर कितना उपयोगी बन गया हूँ, और मैं अब संतों के काम आ रहा हूँ|
तब मेरा दिल ग्लानि से भर गया कि तपस्या के इस लम्बे दौर में, मैं भगवान् को कितना कोस रहा था कि इतनी सारी तकलीफें मुझे ही क्यों?
इस स्थिति पर पहुंचकर मैंने ईश्वर को धन्यवाद दिया कि यह सब तेरी कृपा का ही फल है कि तूने मुझे ऐसी विषम परिस्थितियों में रखा,और मुझे हिम्मत दी कि मैं बिना हिम्मत हारे,अपने पथ पर आगे बढ़ता गया और ऐसे मूल्यवान बना

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