विचारों का प्रभाव

मै एक रेलगाडी की प्रतीक्षा में प्लेटफॉम पर टहल रहा था कि एक पॉम्पलेट (Pamphlet) पर नजर पडी। उस पर लिखा था “जो जैसा सोचता है,वैसा करता है,और वैसा ही बनता है।” मेरा मन इस पंक्ति को पढकर उसमें उलझ  गया। थोडा आगे बढा तो एक  पुस्तकों के ठेले पर  बहुत सी किताबें  दिखी। एक पुस्तक पर लिखा था

“THINK AND GROW RICH”  मैने सोचा कि ये तो वही बात हो गयी जिसमें मेरा मन पहले से ही अटका हुआ है। मैं इस पुस्तक को खरीदने का विचार कर ही रहा था कि गाडी आ गई और मैं बिना पुस्तक लिये ही गाडी मैं बैठ गया किन्तु मेरा मन पॉम्पलेट (Pamphlet) की पंक्तियों एवं पुस्तक के नाम में उलझ गया। मनन करते -करते एक बात मेरी यह समझ में आयी कि दोनो बातों का आधार ” विचार ” है। और  ऐसा लगता  है कि सारे  संसार  का आधार भी  ” विचार ” ही  है। विज्ञान  के सारे चमत्कारों  की जड भी  एक  ” विचार ” ही तो  है। क्योंकि किसी भी काम को  करने के पहले उस विषय में विचार करना होता है। आज लगभग सभी विद्यार्थी अपने कैरियर  के बारे में बहुत सोच – विचार करते  हैं तब अपने निर्णय के अनुसार उस दिशा में कडी मेहनत करते हैं। इस तरह से   उस पॉम्पलेट (Pamphlet) पर   जो लिखा था,  ठीक महसूस हुआ।

विचारों के दूसरे पहलुओं पर जब मेरा ध्यान गया तो मैं ” विचार” के भंवर जाल में और कुछ ज्यादा ही उलझ गया। क्योंकि इसका मनोवैज्ञानिक एवं अध्यात्मिक पक्ष भी है जो अत्यन्त महत्वपूर्ण है। इन सब पर सोचते सोचते  ऐसा लगने लगा कि यह तो खोज (Research) का विषय बनता जा रहा है

आज हम अक्सर नकारत्मकता (Negativity)  एवं  सकारात्मकता  (Positivity) की बात करते हैं वह सब भी तो विचारों का ही खेल है। जब हमारे विचारों में सकारात्मकता  (Positivity) होती है तो हम में धैर्य, साहस बढ जाता है फलतः हम  सफल होते हैं वहीं  नकारत्मकता (Negativity) के कारण घबराहट, चिन्ता,निराशा बढ  जाती है और हमारी कार्यक्षमता घट जाती है। किसी परीक्षा, प्रतियोगिता(Competition)  या चुनौती के समय यदि हम नेर्वस (Nervous ) हो गये तो समझो कि  हमारी  सारी मेहनत पर पानी फिर गया। और वही  हमारी असफलता का कारण बनती है। न केवल इतना ही बल्कि मै तो ये मानता हूं कि नकारत्मकता (Negativity) तो जीवन को नर्क बना देती है।कभी – कभी तो ये इन्सान को नेर्वस ब्रेकडाउन (Nervous breakdown) की स्थिती में पहुंचा देती है।इस कारण विचारों में सकारात्मकता  (Positivity) का होना बहुत आवश्यक है।

इस प्रकार अनेक विचारों के चलते – चलते मै फिर ये सोचने लगा कि क्या किसी मंजिल को पाने के लिये केवल विचार ही पर्याप्त हैं? हां एक बात ये अवश्य है कि जब तक विचार दृढ न होगा हम उस दिशा में कर्म ही नहीं करते हैं। इस प्रकार इसके दो पहलू हैं। एक  दृढ विचार यानी विचारों की शक्ति,  दूसरा उस दिशा में कर्म। जब हमारे विचार शक्तिशाली होते हैं तो असफलता का प्रतिशत लगभग  नगण्य हो जाता है। हम अक्सर ये महसूस करते हैं कि हमारा मस्तिष्क  अनेक विचारों से भरा रहता  हैं और विचार भी एक के बाद एक  तीव्र गति से बदलते जाते हैं। जैसे – विचार किया कि पढाई करना है फिर सोचा कि थोडा कुछ  खा लें। फिर खयाल किया कि अभी नहीं खायेंगे एक चाय पी लिया जाये फिर पढाई करेंगे। इस प्रकार के तीव्र गति से बदलने वाले विचार अत्यंत दुर्बल होते हैं। इनका विशेष अस्तित्व नहीं होता है किन्तु हमारा मस्तिष्क एक कचरे के डिब्बे की तरह भरा रहता है। विचारों की ऐसी भीड में हम किसी खास विषय पर कैसे विचार कर सकेंगे? और किया भी तो वो विचार निर्बल   अस्तित्वहीन सा होगा जिसमें सफलता की गुन्जाइश नहीं होगी। परन्तु यदि हम अपने मस्तिष्क का कचरा थोडा साफ करलें यानी मस्तिष्क को विचारों से कुछ खाली कर लें  तो इससे पहला लाभ यह होगा कि  हम अपने आप को शांत महसूस करेंगे और इससे  मन में एकाग्रता आती है। इस अवस्था में किये गये विचार में एक शक्ति आ जाती है। इस प्रकार शांत अवस्था में एक ही विचार करने पर वह विचार अत्यंत शक्तिशाली बन जाता है और  इसका प्रभाव भी शीघ्र होता है।इस प्रकार मस्तिष्क की नित्य  सफाई करने से मानसिक शक्ति (Mental Power ) का विकास होगा। जिस प्रकार घर से हम अनावश्यक वस्तुओं निकाल कर बाहर करते हैं नित्य सफाई करते हैं उसी तरह नित्य मस्तिष्क से भी अनावश्यक विचारों को अलग कर सफाई  करना आवश्यक है क्योंकि  मन  की शांत अवस्था ही निज विकास के बन्द ताले की चाबी है।
मेरे इस सफर में ” विचार” पर इतना मंथन हो गया कि वास्तव में  अभी बहुत कुछ  कहना बाकी है। इस संबंध मे मेरा निजी  अनुभव आप सब के साथ  बांटने का प्रयास कर रहा हूं। यदि आप भी मेरे विचारों से सहमत हों तो कमेन्ट्स कॉलम में अपनी टिप्पणी अवश्य दें।

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