संतुष्टि

एक राजा के राज्य में बहुत खुशहाली थी| समय के साथ-साथ परिवर्तन होता गया| वह बात ना रही जो पहले थी| राज्य में किसी भी चीज की कमी न होते हुए भी चोरी लूटपाट जैसे घटनाएँ शुरू हो गई| राजा बड़े चिंतित थे कि इसका करण पता तो चले कि ऐसा कैसे होने लगा| वे किसी से सलाह लेने गए| उन्होंने कहा 60 बकरियाँ और 40 कुत्तों को इकठ्ठा करवायें| इन सब को दो दिनों तक भूखा रखिए | फिर खाना इनके लिए मंगवाकर रखवाइये| 40 कुत्तों के लिए खाना इतना मंगवाइये कि 60 कुत्तों को वह खाना पूरा पड जाये और 60 बकरियों के कमरे में सिर्फ इतना खाना हो कि 40 बकरियों को खाना पूरा पड़े| राजा ने ऐसा ही किया | कुत्तों और बकरियों को अपने अपने कमरों में छोड़ा गया| फिर आधे घंटे बाद कमरों में जाकर देखा गया| कुत्तों का सारा भोजन इधर उधर फ़ैला पड़ा था और सारे कुत्ते लहुलुहान हो गए थे| जबकि इनके पास आवश्यकता से अधिक भोजन था| इसके विपरीत जब बकरियों को देखा तो उन्होंने पूरा भोजन अच्छी तरह से खा लिया और बड़े प्रेम से एक से एक चिपक करबड़े ही प्रेम से बैठे हुए थे| जबकि उनके पास भोजन कम था| लेकिन वे संतोषी थीं| जितना मिला उतने में ही तृप्त होकर आराम कर रही थी और शांत थी| कुतों की स्थिति ऐसी होने का कारण यह था कि उनमें असंतोष था वे अतृप्त थे, वे सब चाहते थे कि सारा भोजन मुझे ही मिल जाए| उस सलाहकार ने कहा कि हे राजा! तुम्हें मैंने इस उदाहरण से समझाने की कोशिश की|
तुम्हारे राज्य में किसी भी चीज की भी कमी नहीं है, परंतु लोगों में श्वान वृत्ति अर्थात् कुत्तों की सोच भर गई हैं यह असंतोष की वृत्ति हैं | सभी चाहते हैं कि जो कुछ है सब मुझे ही मिल जाए| इसमें तुम्हारा कोई दोष नहीं है| लोगों को अपने आप में, अपने विचारों में,वृत्तियों में सुधार लाना होगा| हम अपनी इच्छाओं को उठने से तो नहीं रोक सकते परंतु अपनी इच्छाओं पर विजय पाने का प्रयास जरुर कर सकतें हैं और संतुष्ट रह सकतें हैं|

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