आज एक महापुरुष से बातें कर रहा था और बात चली विश्वास पर । वो कह रह रहे थे कि विश्वास का प्रतिशत या तो 100 होता है या फिर शून्य। बीच का कोई प्रतिशत नहीं होता । उन्होने एक कहानी बताया कि विश्वास कैसा हो !
एक गांव में सूखा पड गया था। पानी और अनाज के लाले पड गये थे। गांव के अनपढ और सीधे लोग बेचारे क्या कर सकते हैं? सबने मिलकर यह निश्चय किया कि सारे गांव वाले एक साथ मिलकर गांव के बाहर वाले शिव मंदिर में वर्षा के लिये सामुहिक पूजा व प्रार्थना करेंगे। दिन और समय निश्चित हुआ। सारे गांव के लोग निश्चित समय सुबह 5 बजे सामुहिक पूजा व प्रार्थना करने निकल पडे। उस भीड मे 12- 14 वर्ष का एक बालक छाता लेकर चल रहा था । उसे देख कर सब लोग उसका मजाक उडा रहे थे । एक बूढे व्यक्ति ने उससे कहा कि बेटा ! अभी न तो धूप है और न ही बरसात, फिर किस लिये ये छाता लाये हो ? बालक ने कहा – दादा जी ! अभी जब सभी मिलकर पूजा व प्रार्थना करेंगे तब बरसात तो होगी ही और हम भीग जायेंगे, इसलिए छाता लाया हूं। बालक की नादानी भरे उत्तर को सुनकर बूढे व्यक्ति की आंखें नम हो गयी और बोला बेटा ! आज यदि बरसात हुई तो केवल तेरी प्रार्थना सुनकर ही होगी । पूजा के बाद सब गांव लौट रहे थे और सब आधे रास्ते पहुंचे कि काले – काले बादल छा गये, गर्जना होने लगी और इतनी तेज बारिश हुई कि केवल बालक को छोडकर बाकी सब लोग भीग रहे थे ।
वास्तव में यही विश्वास 100% कहलाता है । आप ने छोटे बच्चों के विश्वास को देखा होगा कि मां या पिता किसी थोडे ऊंचाई पर बच्चे को खडा कर कूदने को कहते हैं और बच्चा तुरंत कूद जाता है। क्योंकि उसे 100% विश्वास है कि मां मुझे गिरने नहीं देगी । किंतु थोडे बडे होते ही यदि फिर कूदने को कहा जाये तो बच्चे कूदते नहीं। न जानें हमारा वो विश्वास कपूर की तरह कहां उड जाता है पता नही? जब 100% विश्वास साक्षात दिखने वाले ईश्वर (मां – पिता) पर ही नहीं रहा तो, न दिखने वाले ईश्वर 100% विश्वास पर कहां से ला सकेंगे? और इस प्रकार धीरे-धीरे हमारे अंतर से विश्वास करने का गुण ही कम होने लगता है, फलत: हम अपनी मेहनत , अपनी कामयाबी पर भी शंकित ही रहते हैं जो उन्नति के लिये एक बडी बाधा है।
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बहुत ही प्रेरक कहानी ।